पदार्थ की जिस रचना को हिंदी में हम परमाणु कहते हैं वह असल में ग्रीक शब्द Atom का अनुवाद है| ईसा के लगभग 450 वर्ष पूर्व एक ग्रीक दार्शनिक ने किसी पदार्थ को टुकड़े-टुकड़े करते हुए यह कल्पना की कि यदि किसी पदार्थ को बहुत बारीक करते जाएँ तो एक सीमा के बाद जो टुकडें बचेंगे उन्हें उसके आगे और छोटे टुकड़ों में नहीं बांटा जा सकेगा| दार्शनिक देमोक्रिटस ने कल्पना की कि यह अविभाज्य टुकड़े पदार्थ की ऐसी इकाई होनी चाहिए जिनसे पदार्थ का निर्माण होता है| इन्हें उस दार्शनिक ने “Atom” यानी “अविभाज्य” कहा|

समय के साथ यह बात लोग भूल गए लेकिन सन 1800 के आसपास एक रसायनज्ञ ने इन अणुओं के गड़े-मुर्दे फिर उखाड़ दिए| इन महोदय का नाम जॉन डाल्टन था और यह पढ़ाकर अपना जीवनयापन करते थे लेकिन खाली समय में प्रकृति की अबूझ पहेलियों को हल करने के प्रयास करते रहते थे| डाल्टन ने पदार्थ की प्रकृति और बनावट समझने की दिशा में काफी प्रयास किये| गैसों के दबाव के विभिन्न प्रयोगों के ज़रिये डाल्टन ने सिद्ध किया कि गैसें किन्ही छोटे-छोटे यानी सूक्ष्म कणों से मिलकर बनी है| उसने यह भी सिद्ध किया कि गैसें जिन यौगिकों से मिलकर बनी हैं वह कुछ ख़ास तरह के परमाणुओं और अणुओं से मिलकर बनी होती है| डाल्टन ने परमाणुओं के सिद्धांत की रूपरेखा निर्धारित की| इस विषय की संक्षिप्त जानकारी इस वीडियो में है-
डाल्टन के बाद इंग्लैण्ड के मेनचेस्टर में जन्मे जे.जे. थोमसन के कहा कि परमाणु अविभाज्य नहीं बल्कि विभाज्य है| उनका कहना था कि परमाणु को और भी छोटे-छोटे सूक्ष्म कणों में विभाजित किया जा सकता है| इन कणों को उन्होंने इलैक्ट्रोन कहा| थोमसन की इस परिकल्पना से उस समय के तमाम वैज्ञानिकों को काफी परेशानी रही| इन वैज्ञानिकों का कहना था कि जब भौतिकी के नियमों और सिद्धांतों का काम परमाणु को टुकड़ों में विभाजित किये बिना ही अच्छे तरीके से चल रहा है तो थोमसन यह नयी कहानी क्यों गढ़ रहे हैं| थोमसन के विरोधियों की टोली में एक महाशय विलियम रोंजजन भी थे जिन्होंने X- Rays की खोज की थी और उन्हें नोबेल पुरस्कार भी मिला था| रोज्जन तो इस विचार के इतने विरोध में थे कि कई सालों तक यदि कोई उनकी प्रयोगशाला में इलेक्ट्रान का नाम ले लेता तो वह उस पर बरस पड़ते, उनका गुस्सा चरम पर पहुँच जाता| खैर, रोज्जन महोदय की इलेक्ट्रोन्स से जुड़ीं कहानी मजेदार है तो यह कहानी कभी और!

इसके बाद रदरफोर्ड आये और परमाणु विभाज्य हो गया| फिर चैडविक आये और परमाणु के तीन टुकड़े करने पड़े| यह सब होते होते २०वीं सदी आ गयी थी| फिर वैज्ञानिकों ने नाभिक के भी तमाम टुकडें कर दिए और क्वार्क-ग्लुओंस जैसे कण खोजे गए|
बात परमाणुओं के देखने से शुरू हुई थी| लोग “आँखों देखी” बात पर भरोसा करते हैं| इस बीच में लोग सूक्ष्मदर्शियों की क्षमता में सुधार करते गए और सूक्ष्म से सूक्ष्म देखने की सुविधा इंसान के लिए संभव होती गई|

आज के संभव इलेक्ट्रोन माइक्रोस्कोपों की मदद से परमाणुओं को आसानी से देखा जा सकता है| हालांकि इन्हें देखना उतना आसान भी नहीं है| जर्मनी की उल्म विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर ऊटे काइज़र ने अपने इलेक्ट्रान माइस्क्रोस्कोप में बदलाव करके एक नयी साल्वे तकनीक की मदद से कार्बन परमाणुओं की फोटो खींचीं| षट्भुजाकार संरचना में सजे यह कार्बन परमाणु ग्राफिन के हैं| यहाँ षट्भुज में हर एक गोल आकृति कार्बन परमाणु है| इन परमाणुओं की छवि लेने के लिए प्रकाश के स्थान पर इलेक्ट्रान्स का इस्तेमाल किया गया और यह परमाणुओं की असली छवि है| हालाँकि अब यह सामान्यतः संभव है और विश्व भर के कुछ वैज्ञानिक परमाणुओं की ऐसी सुन्दर फोटो खींच सकते हैं|
इस बीच में कई लोगों ने और भी अप्रत्यक्ष रूप से भी परमाणुओं के अस्तित्व को साबित किया था| लेकिन यह अब एक “आँखों देखी” बात है| कल्पना से आँखों देखी बात तक का सफ़र बहुत लम्बा था|
सन 2008 में जापान के प्रोफ़ेसर मोरिटो ने तो परमाणुओं को नियंत्रित तरीके से एक स्थान से उठाकर दुसरे स्थान पर रखने की भी विधि बता डाली|

Very good and helpful for hindi speaking students …. Thank you
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