माइकल फैराडे: भुखमरी से अमरत्व का सफ़र

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Michael Faraday

माइकल फेराडे को वैज्ञानिक इतिहास के सबसे प्रतिभाशाली और प्रभावशाली लोगों में गिना जाता है| फैराडे के शुरूआती शोध ने विज्ञान को नयी दिशा दी| फैराडे का नियम विद्युत् मोटर के निर्माण की नींव बना जो आज की टेक्नोलोजी का एक बड़ा हिस्सा है| फैराडे ने अपने प्रेरण के नियम के आधार पर भविष्यवाणी की थी कि चुम्बकीय बलों के गुणों के देखते हुए इलेक्ट्रिक मोटर जैसे किसी उपकरण का निर्माण संभव है| फैराडे के पहले इलैक्ट्रिक मोटर्स का आविष्कार नहीं हुआ था| सन 1821 में डेनिश वैज्ञानिक हैंस क्रिस्चियन ओस्ट्रेड ने विद्युत्चुम्बकत्व की खोज की| इसके बाद हम्फी देवी और एक अन्य अंग्रेज वैज्ञानिक विलियम वोलान्सटन ने इलैक्ट्रिक मोटर बनाने की काफी कोशिशें कीं मगर असफल रहे| फैराडे ने इन दोनों वैज्ञानिकों से चर्चा करने के बाद इलैक्ट्रिक मोटर बनाने की कोशिश की और पहली इलैक्ट्रिक मोटर बनाने में सफल हुए| इस मोटर को होमोपोलर मोटर कहा गया| इन प्रयोगों को विद्युत् चुम्बकीय टेक्नोलॉजी का आधार कहा जाता है| फैराडे के चालक और चुम्बकीय बालों सम्बन्धी शोध ने विद्युत् चुम्बकीय बलों को को समझने में क्रांतिकारी योगदान दिया| इसके बाद फैराडे ने जल्दी में इलैक्ट्रिक मोटर सम्बन्धी परिणामों को एक शोधपत्र की शक्ल देकर बिना हम्फी डेवी और विलियम का नाम शामिल किये प्रकाशित करने भेज दिया| इसके बाद हम्फी डेवी उनसे काफी नाराज़ हो गए और फैराडे को कई वर्षों तक विद्युत् चुम्बकत्व पर शोध वाली प्रयोगशाला में घुसने की रोक लगा दी थी| फैराडे ने विद्युत् और चुम्बकत्व पर क्रान्तिकारी शोध किया|

सामान्य तौर पर फैराडे को भौतिकविद माना जाता है| मगर अपने करियर की शुरुआत उन्होंने रसायनशास्त्र से की थी| बहुत कम लोगों को पता होगा कि प्रसिद्ध रसायन यौगिक बेंजीन की खोज फैराडे ने की थी| फैराडे ने ही बुन्सन बर्नर का प्रारंभिक डिजाइन बनाया था| फैराडे ने ही कैथोड, एनोड, इलेक्ट्रोड और आयन जैसे शब्दों को चलन आरम्भ किया| उन्होंने इलेक्ट्रोलिसिस के नियमों की खोज की| फैराडे ने सोने के बारीक कणों वाले कोलाइडल विलयन के प्रकाशिक गुणों का अध्ययन करते हुए देखा कि इनके गुण सोने के सामान्य गुणों से अलग हैं| ऐसा कहा जाता है कि वह सोने के नैनोपार्टिकल वाला विलयन था और फैराडे ने उन विलयनों में क्वांटम गुणों को देखा था| इसे शायद क्वांटम आकार के गुणों का पहला प्रयोग कहा जा सकता है|

फेराडे का वैज्ञानिक जीवन इतना सीधा-सादा नहीं था, जितना उनकी उपलब्धियों और उनके आभामंडल को देखकर मालूम होता है|

माइकल फैराडे का जन्म 22 सितम्बर सन 1791 को इंग्लैण्ड के सूरी में न्यूइंगटन नामक जगह पर हुआ था| उनका जन्मस्थान अब लन्दन के अन्दर शामिल हो गया है, पहले वह गाँव हुआ करता था| उनके पिता जेम्स फैराडे पेशे से एक लोहार हुआ करते थे| सन 1791 में ही वह उत्तरी इंग्लैण्ड के किसी गाँव से रोज़ी-रोटी की तलाश में घुमते हुए न्यूइंगटन गाँव आ पहुंचे थे| उनकी तबियत अक्सर ख़राब ही रहती थी| घर में माँ के साथ चार बेटे-बेटियाँ थे| घर में कई बार खाने के लाले पड़ जाते| बहुत बाद में जब फैराडे को दुनिया भर में ख्याति मिल गई तब उन्होंने खुद एक साक्षात्कार में बताया था कि एक बार बचपन में जब लम्बे समय से पिता जी बीमार थे और घर में खाना नहीं था तब उन्हें रोटी के सिर्फ एक टुकड़े से एक हफ्ते तक काम चलाना पड़ा था| फैराडे ने सिर्फ पढना और लिखना सीखा था और वह भी मात्र 13 वर्ष की उम्र में घर के लिए रोज़ी-रोटी कमाने में लग गए थे| यह पढना-लिखना भी उन्होंने एक चर्च में चलने वाले रविवारीय स्कूल में सीखा था जो कि चर्च के लोग गरीब बच्चों के लिए चलाते थे|

शुरुआत में उन्होंने अखबार बांटने का काम किया| लगभग एक साल बाद लन्दन के ब्लैंडफोर्ड स्ट्रीट पर जोर्ज रिबेऊ नाम के एक किताब की बाइंडिंग करने वाले के यहाँ अप्रेंटिस के तौर पर काम करने लगे| यही नौकरी उनके जीवन में एक अलग संभावनाएं लेकर आई| उन्होंने सात सालों तक इसी दूकान पर काम किया| खास बात यह थी कि इस बीच उन्होंने उन तमाम बेहतरीन किताबों को पढ़ा जिन्हें उन्होंने बाइंड किया| यहीं वह विज्ञान की और आकर्षित हुए| इसका श्रेय मुख्यतः दो किताबों को दिया जाता है- एक है जेन मर्सेट की ‘कन्वर्सेसंस ऑन केमिस्ट्री’ और दूसरी है ‘डी एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका’| पहली किताब में सामान्य भाषा में रसायन शास्त्र समझाया गया था और दूसरी में इलेक्ट्रिकल और अन्य विषयों की जानकारी थी| फैराडे इन किताबों में विज्ञान से इतना प्रभावित हुए कि अपनी छोटी सी कमाई में से पैसे बचाकर वह विभिन्न रसायन खरीद लाते और घर पर मनमाने प्रयोग करते| वह यह जानने की कोशिश करते कि जो बातें किताबों में उन्होंने पढ़ी हैं वह सच है या हवा-हवाई है| जब-जब वह किताबों में लिखे प्रयोगों को खुद सच सिद्ध कर पाते उनकी ख़ुशी और रोमांच का ठिकाना न रहता|

सन 1810 से वह जॉन टाटम नामक वैज्ञानिक के संपर्क में आये जो कि अपनी किताबें बाइंड कराने उनके पास आता था| जॉन ने लन्दन में सिटी-फिलोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना की थी जो की विभिन्न विषयों पर विद्वानों के लेक्चर्स कराती थी| यह सब जॉन के घर पर ही होते थे| फैराडे ने अपने भाई से पैसे उधार लेकर इन लेक्चर्स के टिकट खरीदकर जाना शुरू कर दिया|

सन 1812 में जब वह 20 साल के थे तब उन्हें एक बेहतरीन मौका मिला जिसने एक बार फिर उनके जीवन की दिशा बदल दी| बुक-बाईंडिंग की दूकान पर एक पियानो बजाने वाला आदमी आता था जिसका नाम विलियम डान्स था| फैराडे की उत्सुकता और लगन देखकर एक बार उसने सर हम्फी डेवी के लेक्चर्स के टिकट उपलब्ध करा दिए जो कि रॉयल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन नामक संस्था में हो रहे थे| यह लेक्चर्स कई दिन चले, और हम्फी डेवी के यह लेक्चर्स फैराडे ने पूरी लगन और खुले दिमाग के साथ सुने| इसके साथ ही वह इन लेक्चर्स के नोट भी बनाते रहे| लेक्चर सीरिज़ ख़त्म होने पर फैराडे सर हम्फी डेवी से मिले और उनके लेक्चर्स पर आधारित नोट बनाकर उनकी बाइंड करके 300 पेज की एक किताब बनाकर उन्हें सौंपी| इससे हम्फी खुश तो बहुत हो, लेकिन जब फैराडे ने उनसे प्रयोगशाला में एक नौकरी की मांग की तो उन्होंने बिना औपचारिक शिक्षा वाले फैराडे को एक बहुत ही रूखा सा उत्तर दिया और कहा कि उनके पास कोई खाली जगह नहीं हैं| फैराडे उदास होकर फिर घर आ गए| बाद में जब एक बार हम्फी डेवी ने एक प्रयोग के दौरान अपनी आँख की रौशनी गँवा दी और उनका एक असिस्टेंट नौकरी छोड़कर भाग गया तब उन्होंने फैराडे को याद किया| फैराडे को शुरू में प्रयोगशाला की सारी परखनलियाँ धोने का काम दिया गया था, और शुरुआत में वो कई दिन परखनलियां ही धोते रहे थे|

फैराडे ने रॉयल इंस्टिट्यूट 01 मार्च 1813 को केमिकल असिस्टेंट की नौकरी स्वीकार की थी| इसी साल के अंत में हम्फी डेवी कई देशों में विभिन्न विषयों पर लेक्चर्स देने लम्बी यात्रा पर निकले| इस यात्रा में हम्फी और उनकी पत्नी भी साथ थी| इन दोनों लोगों का फैराडे के लिए वर्ताव बहुत ही ख़राब था| वह फैराडे के साथ बंधुआ नौकर की तरह व्यवहार करते| फैराडे का कई बार मन हुआ कि वह यह वर्त्ताव नही झेल पायेगा और कई बार नौकरी छोड़ने की सोची| लेकिन हम्फी एक महान शिक्षक-वैज्ञानिक थे| उनके लेक्चर्स से फैराडे को बहुत कुछ सीखने को मिल रहा था| इसलिए फैराडे ने तमाम परेशानियां और दुर्व्यवहार होने के बाद भी नौकरी नहीं छोड़ी|

सन 1820 में फैराडे ने वैज्ञानिक इतिहास में पहली बार कार्बन और क्लोरिन के यौगिक ( C2Cl6, C2Cl4) पहचाने और अलग किये| सन 1825 में उन्होंने बैन्जीन की खोज की और पृथक किया| फैराडे ने इतिहास में पहली बार अमोनिया और क्लोरिन गैसों को तरल बनाकर लिक्विफाई किया| इसके बाद यह यात्रा आगे बढती रही और फैराडे ने पीछे मुड़कर नहीं देखा| उनके कई बार अपने गुरु हम्फी डेवी से अनबन हुई लेकिन वह काम करते रहे और ख्याति पाते रहे|

इसके बाद फैराडे ने भौतिकी की और रुख किया| वह एक महान और चतुर प्रयोगधर्मी थे|

महानतम वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टीन फैराडे को अपना हीरो मानते थे| उनके कमरे में सिर्फ तीन वैज्ञानिकों के चित्र लगे होते थे- न्यूटन, मेक्सवेल और फैराडे| 21सवी सदी की टेक्नोलोजी के लिए फैराडे के योगदान नींव की तरह हैं| 

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