
‘प्रौढ़ता अक्सर युवावस्था से अधिक बेतुकी होती है’.
ये बात थॉमस एल्वा एडिसन ने कब और किस सन्दर्भ में कहीं होगी इसका अंदाज़ा आप चाहें तो इस लेख के अंत में लगा सकते हैं. लेकिन हाँ उन्होंने यह माना है कि उनके पास उम्र के किसी भी पड़ाव पर हर चीज़ के लिए पर्याप्त समय था. व्यापार के लिए, आविष्कार के लिए और इश्क के लिए भी.
ये उन दिनों की बात है जब थॉमस एल्वा एडिसन की पत्नी मेरी स्टिलवेल की मृत्यु हो चुकी थी. सन था 1884. उनपर अपने तीन बच्चों की ज़िम्मेदारी आ गयी थी. लेकिन जैसा उन्होंने कहा है कि ‘There is time for everything’, अपने बच्चों को पालने के दौरान भी वह इतना वक़्त अपने लिए निकाल लेते थे कि घंटो अपने बनाये ‘मेलनो पार्क लेबोरेटरी’ में बैठ सकें. अपनी इसी कार्य कुशलता के चलते वह अब तक दुनिया भर में मशहूर हो चुके थे. उनके पास सैकड़ों पेटेंट थे और फोनोग्राफ, विद्युत बल्ब, जैसे महान आविष्कार के बाद उन्होंने एक विशाल व्यवसाय स्थापित कर लिया था. लेकिन कुछ था जो उनके अन्दर खाली था. उन्होंने इस खालीपन को भरने के लिए स्वयं को इस कदर व्यस्त कर लिया कि औसतन हर हफ्ते ही उनके नाम कोई न कोई पेटेंट होता था. इससे उनका शरीर और दिमाग तो हमेशा कार्यान्वित थे लेकिन दिल के पास कोई काम नहीं था, सिर्फ धड़कने के अलावा. अब आप ये मत सोचिये की उनके पास महिलायों का कोई प्रस्ताव नहीं था. तीन बच्चों के पिता होने के बाद भी वो दुनिया के “Most Eligible Bachelors” की श्रेणी में शुमार थे. उनके यहाँ महिलायों की लम्बी कतार थी. लेकिन उनकी तलाश को कहीं ठांव नहीं मिल रही थी. वह जिस भी महिला से मिला करते वो या तो घोर चापलूस होती या बेहद मतलबी होती.
थॉमस एल्वा एडिसन की यह स्थिति उनके पुराने मित्र एज्रा गिलीलैंड और उनकी पत्नी से छुपी नहीं थी. वो दोनों दुनिया के इस चहेते अविष्कारक के जीवन में प्रेम लाना चाहते थे. इसके लिए दोनों ने मिलकर एक योजना तैयार की. इस योजना में खुद एडिसन साहब कितना शामिल थे यह कहा नहीं जा सकता. अपने इस मित्र के बुलावे पर वह उनके घर, बोस्टन पहुंचते हैं. एडिसन साहब के स्वागत में वहां एक शानदार पार्टी की व्यवस्था की गयी थी, जिसमें एक से बढकर एक खुबसूरत लड़कियों को आमंत्रित किया गया था. यह पार्टी पूरी तरह से मिस्टर एडिसन के लिए रखी गयी थी. उनकी निगाह हर एक खुबसूरत लड़की के हुनर पर पड़ सके इसके लिए जनाब गिलीलैंड और उनकी पत्नी ने हर लड़की की योग्यता के अनुसार उनके लिए कोई न कोई गतिविधि सोच रखी थी. इस खास पार्टी के जत्थे में १९ साल की ‘मीना मिलर’ ने भी शिरकत की. मीना कमसीन और खुबसूरत थीं.
पार्टी के दौर में एज्रा गिलीलैंड पियानो बजाने और एक गीत गुनगुनाने के लिए ‘मीना मिलर’ के नाम की घोषणा करते हैं. मीना को देख कर एडिसन की आंखें उन पर ठहर जाती हैं और जैसे ही वह पियानो पर उंगलियाँ फेरती हैं एडिसन साहब स्तब्ध रह जाते हैं और उनकी मखमली आवाज़ पर उनका दिल मचलने लगता है. लेकिन इश्क होना अभी बाकि है. मीना मिलर की और हो रहे इस झुकाव को उनके दोस्त एज्रा गिलीलैंड बखूबी पहचान लेते हैं और योजना के तहत पार्टी के बाद, मीना और एडिसन साहब की आमने-सामने मुलाक़ात करवाते हैं. बातों- बातों में एडिसन साहब को पता चलता है कि सुन्दर होने के साथ ही मीना उच्च दर्जे की शिक्षा भी ले रही है और वह सामाजिक क्रियाकलापों में भी काफी दिलचस्पी रखती हैं. इसके साथ ही एडिसन साहब के सामने यह बात भी खुलती है कि मीना के पिता लेविस मिलर एक धनि व्यापारी है. मीना मिलर, एडिसन साहब के इश्क की सभी शर्तों पर खरी उतर रही थी. एडिसन साहब ने बिना देर किये ही मीना को अपना दिल दे दिया. इस तरह उनके दिल के जिम्मे कई काम आ पड़े.

उम्र के बड़े फ़ासलों के दरमियान भी इश्क का रंग गहरा लाल हो रहा था. एडिसन साहब अब अक्सर ही बोस्टन आने लगे. मीना मिलर से उनकी मुलाकातों का सिलसिला बढ़ने लगा. एडिसन साहब के पास कई ऐसे अनुभव, संवेदनाएं, किस्से और वादे होते जो वह मीना से कहना और सुनना चाहते थे. लेकिन परिस्थितियां कभी उन्हें ऐसे मौके नहीं देती थी. वह जब भी मीना से मिलने उनके घर पहुँचने वाले होते उससे पहले ही उनकी लोकप्रियता वहां पहुँच जाती और उनसे मिलने के लिए लोगों का हुजूम आ जाता. इस दौरान वह अपनी प्रेमिका के साथ तो रहते लेकिन अपनी भावनाएं उनसे कह पाना उनके लिए संभव नहीं हो पाता. एडिसन साहब के इस हालात -ए- इश्क पर रामधारी सिंह दिनकर जी की एक कविता खूब फबती है.
शब्द जब मिलते नहीं मन के, प्रेम तब इंगित दिखाता है. बोलने में लाज जब आती है, प्रेम तब लिखना सिखाता है.
कुछ ऐसा ही एडिसन साहब के प्रेम में भी हुआ. उन्होंने इस समस्या का एक हल ढूंढ लिया. जो उनके पुराने कार्य से उपजा हुआ था. टेलीग्राफ ऑपरेटर का कार्य करते समय एडिसन साहब ने एक गुप्त भाषा सीखी थी जिसे ‘मोर्स कोड’ कहा जाता है. आगे बढ़ने से पहले आपको बताते हैं की मोर्स कोड क्या होता है. उस समय में ‘मोर्स कोड’ सन्देश भेजने का एक तरीका होता था जो सामान्य भाषा से एकदम भिन्न था. इस भाषा में टेलीग्राफ की मदद से डॉट और डैश के माध्यम से संदेशों का आदान प्रदान किया जाता था. अंग्रेजी की हर वर्णमाला के लिए इन्ही डॉट और डैश से एक कोड तैयार किया जाता था, जिसमें कम से कम एक डॉट या डैश और ज्यादा से ज्यादा चार डॉट या डैश के मेल का प्रयोग होता था. इसे जानने वाला ही इस भाषा को समझ सकता था. इस भेदी भाषा के लिए थॉमस एल्वा एडिसन की दीवानगी इस कदर थी की उन्होंने अपनी बेटी के घर का नाम ‘डॉट’ और बेटे का नाम ‘डैश’ रखा था. मोर्स कोड की यह भाषा एडिसन साहब के प्रेम में क्रांतिकारी साबित हुयी. उन्होंने यह गोपनीय भाषा अपनी प्रेमिका मीना मिलर को भी सिखा डाली. मीना ने भी अपने इश्क की घास को हरा रखने के लिए कड़ी मेहनत की. प्रेम की अविभक्ति के इस नए अंदाज़ ने दोनों के बीच की दूरियाँ कम कर डालीं. वह दोनों लोगों की भीड़ में बैठे हुए एक दूसरे की हथेलिय पर मोर्स कोड में अपना प्रेम व्यक्त किया करते और किसी के कानों में एक शब्द नहीं गूंजता था. उनकी छोटी-छोटी बातें प्रेम से सराबोर होती, जो उनकी चिकनी हथेलियों में चाशनी की तरह लिपटी रहती.
एडिसन साहब और मीना मिलर का प्रेम बातों की खुश्बूयों से भरने लगा. वह कभी अमलताश की तरह तो कभी रजनीगंधा की तरह महकते रहते. वक़्त पंख लगा कर उडता रहा और यह दोनों नेह की नदी में डूबते उतराते रहे और एक दिन ऐसा भी आया जब इनका लाल इश्क कत्थई रंग में ढल चूका था तब एडिसन साहब ने मीना के हथेली अपने हाथ में ली और उसके पीछी लिखा.
‘ .– — ..- .-.. -.. -.– — ..- — .- .-. .-. -.– — . ’ (क्या तुम मुझसे शादी करोगी?)
थॉमस एल्वा एडिसन के इस प्रश्न का जवाब देने के लिए मीना मिलर ने उनकी हथेली के पीछे लिया.
‘ -.– . .. ’ (हाँ)
very nice story sir………….
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Excellent stor
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