आपसे बहस व्यर्थ है: बर्ट्रेंड रसेल

Bertrand Russell

हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं जिसमे विचारों और मतों में गहरा विभाजन हैं। इस वैचारिक विभाजन के दौर में लोगों से आपस में बातचीत करना और विषयों पर वाद-विवाद करना उतना सहज नहीं रहा। दोस्तों और अपनों में भी वैचारिक मतभेद के कारण विद्वेष उत्पन्न हो जाता है। किसी विषय पर वैचारिक असहमति अब विभाजन का कारण बन चुकी है। वैचारिक असहमति के बावजूद आपस में साथ रहकर भी यथासंभव समाज के भले की दिशा में सोचना और प्रयास करना बहुत असंभव सा लगता है। इस दौर में जब वैचारिक असहमति की तीव्रता का स्तर सामंजस्य के न्यूनतम स्तर से भी कम हो जाता है तो बातचीत और संवाद बेमानी प्रतीत होने लगता है। एक ऐसी ही परिस्थिति में बर्ट्रेंड रसेल ने वैचारिक रूप से भिन्न मत वाले व्यक्ति के एक पत्र का उत्तर देते हुए जवाब दिया था कि हमें अब बहस नहीं करनी चाहिए क्योंकि हमारे विचारधाराओं की भिन्नता का स्तर बहुत ही गहरा है। बर्ट्रेंड रसेल एक प्रख्यात दार्शनिक थे, जिन्हें उनके लेखन के लिए नोबेल पुरस्कार भी प्रदान किया गया था। सन 1962 में सर ओसवाल्ड मोसले की ओर से बर्ट्रेंड रसेल को पत्रों की एक श्रंखला प्राप्त हुई, मोसले ने इसके लगभग तीस साल पहले ब्रिटिश फासीवादी संघ की स्थापना की थी। मोसले इन पत्रों के ज़रिये रसेल को फासीवाद पर एक बहस में खींचना चाहते थे। रसेल का यह बेहतरीन पत्र रोनाल्ड क्लार्क द्वारा लिखित बर्ट्रेंड रसेल की जीवनी “द लाइफ ऑफ़ बर्ट्रेंड रसेल” में शामिल किया था। जब रसेल ने यह पत्र लिखा तब वह अपना 90वाँ जन्मदिन मना रहे थे।

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प्रिय श्री ओस्वाल्ड,

आपके द्वारा भेजे गए पत्र और संलग्नकों के लिए शुक्रिया। मैंने हमारे हालिया पत्राचार पर कुछ विचार किया। Read More……

1 Comment

  1. Yeh blog
    Samaj me vaad-vivaad ke saath Rusell sahab hi personality ka lekha-jokha, kaafi electifying raha…

    Please, ho sake toh aaj kal ke science ke chamatkari logo par bhi likihe.

    Good luck for all your works👍

    Like

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