
मानव के शरीर में संक्रमण तभी होता है जब हमारी कोशिकाएं (त्वचा कोशिकाओं के अलावा) वायरस या वैक्टीरिया के संपर्क में आती हैं. इस प्रक्रिया में त्वचा की परत एक किले की दीवार की तरह वायरस से सुरक्षा का काम करती है. सामान्य परिस्थितियों में वायरस त्वचा को भेदकर शरीर के अन्दर नहीं जा पाता. शरीर में संक्रमण के लिए वायरस हमारे शरीर के उन छिद्रों से अन्दर जाना ज़रूरी होता है, जहां कोशिकाएं लाल मांस के रूप में उपलब्ध होती हैं, इन छिद्रों को त्वचा की ऊंची दीवारों वाले किले में दरवाजों की तरह समझा जा सकता है. सामान्यतः कोई भी वायरस आँख, नाक, मुंह या मूत्र की नली से हमारे शरीर के अन्दर घुस पाता है. इसीलिए वायरस/बैक्टीरिया से संक्रमण से बचने के लिए इन द्वारों को सुरक्षित रखने के लिए कहा जाता है. इसीलिए हम मुंह पर मास्क पहनते हैं, आँखों को बचाने के लिए शील्ड लगाते हैं. एक बार जब वायरस शरीर के इन द्वारों से अन्दर घुस आता है तो हमारे शरीर की कोशिकाओं की पतली सी बाहिरी झिल्ली (membrane) इसे कोशिकाओं के अन्दर आने से रोकने की कोशिश करती है. लेकिन यह सब वायरस अक्सर किसी ऐसे चोले में खुद को छिपाकर आते हैं जिसे हमारी कोशिकाओं की झिल्ली अपना समझने की भूल कर बैठती है तो इन वायरसों को अन्दर आ जाने की छूट मिल जाती है. आपने ट्रॉय के युद्ध का ट्रोजन हॉर्स वाला किस्सा तो सुना ही होगा, वायरल संक्रमण यह खेल शायद ठीक ऐसे ही होता है. कोशिका के अन्दर आने के बाद यह वायरस कोशिका की कार्यप्रणाली पर अपना कब्ज़ा ज़माना शुरू कर देता है. इसके बाद यह एक के बाद एक शरीर की सभी कोशिकाओं पर कब्ज़ा करता जाता है, एकदम उपनिवेशवादियों की तरह. जब यह शरीर की अधिकतम कोशिकाओं पर कब्ज़ा करने में सफल हो जाता है तो यह सांस, मल के ज़रिये शरीर के बाहर आना शुरू कर देता है ताकि इसे किसी अन्य शरीर पर कब्ज़ा जमाने का मौका मिल सके. इस प्रकार एक बार वायरस के शरीर में जाने के बाद इसे शराब या डिसइन्फेक्टेंट से नहीं साफ़ किया जा सकता. वायरस को शराब या डिसइन्फेक्टेंट से तब तक साफ़ करना सम्भव होता है जब तक यह हमारी त्वचा पर बैठा है. यानी इस शत्रु को किले के बाहर ही मारना आसान है. यहाँ एक बात और बता देना ज़रूरी है कि कोरोनावायरस के RNA ने अपनी सुरक्षा के लिए चारों ओर वसा का कवच पहना होता है और उसके ऊपर वह प्रोटीन अणु चिपके होते हैं जो मानव कोशिकाओं की झिल्ली को धोखा देकर भेदकर अन्दर घुसने के लिए ज़रूरी होते हैं. हम यह जानते ही हैं कि साबुन से चिकनाई यानि वसा को साफ़ यानी डिग्रेड किया जाता है, इसीलिए बर्तनों की चिकनाई धुलने में साबुन इस्तेमाल होता है. इसी प्रकार साबुन से कोरोना वायरस के RNA के ऊपर चढ़े वसा के कवच को तोड़ दिया जाता है, इसके बाद वायरस के शरीर की कोशिकाओं में घुस पाने की सम्भावना कम हो जाती है. हालांकि यह जानकारी भले ही इतनी आसान लग रही हो मगर इसमें ब्रह्मांड के जटिलतम रहस्य छुपे हैं जिन्हें वैज्ञानिक खोजने की दिन-रात कोशिशें करते रहते हैं. जिन रहस्यों की मदद से अभी दवा और वैक्सीन बनना बाकी है. (मुझे उम्मीद है इस कठिनतम विषय का इतना सरलीकरण करने के लिए मेरे साथी वैज्ञानिक मुझे माफ़ कर देंगे)