“मुझे विश्वास है कि इस मामले को काम के अत्यधिक बोझ से दबे पति महोदय की नज़र में लाना आपके लिए संभव होगा|“

जर्मनी में सन 1933 की शुरुआत में ही हिटलर के सत्तासीन होते ही फासीवाद के विरोधियों को चिन्हित करके उनपर दमन किया जाना शुरू हो गया था| प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टीन तानाशाही के विरोध में उस समय एक मुखर चेहरा बन चुके थे| 20 मार्च, 1931 को अलबर्ट आइन्स्टीन के कापुथ नामक स्थान पर बने एक घर में नाज़ी सेना ने छापा मारा| जर्मनी के “नेशनल सोशलिस्ट्स” ने खाकी कमीज़ वाली सेना और पुलिस को अलबर्ट आइन्स्टीन के घर पर छापा मारने भेजा था| आइन्स्टीन पर आरोप था कि उन्होंने अपने घर में हथियारों और बारूद का भंडार छुपाया हुआ है| इस छापे में नाज़ी पुलिस को आइन्स्टीन के घर में हथियारों जैसी जो वस्तु मिली, वह थी डबल-रोटी काटने वाली चाकू| इस छापे के बारे में अमेरिका के न्यू-यॉर्क टाइम्स अखबार ने खबर छापी थी| इसके बाद ही आइन्स्टीन को जर्मनी में राष्ट्रवादियों की ओर से तमाम धमकियां मिलने लगीं और सन 1933 में ही आइन्स्टीन को जर्मनी छोड़कर इंग्लैण्ड के ज़रिये अमेरिका आना पड़ा| अमेरिका ने उन्हें शरण दी और नागरिकता भी|
उस समय अमेरिका में यूरोप से काफी लोग शरणार्थी बनकर आये| सन 1941 में अमेरिका में विस्थापित होकर आये शरणार्थियों को रोकने के लिए सरकार की ओर से नियमों में कुछ परिवर्तन की योजना बन रही थी| इसके बारे में जब अलबर्ट आइन्स्टीन को पता चला तो उन्होंने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूजवेल्ट की पत्नी श्रीमती रूजवेल्ट को एक व्यक्तिगत पत्र लिखा| इस पत्र में उन्होंने श्रीमती इलियेनर रूजवेल्ट को न्याय के समर्थन में खड़े रहने के लिए तारीफ़ करते हुए लिखा था-
“प्रिय श्रीमती रूजवेल्ट:
मैंने महान संतुष्टि के साथ देखा है कि आप हमेशा न्याय और मानवता के साथ खड़ी होती हैं, भले ही वह मुश्किल हो| अतः अपनी इस गंभीर चिंता में, मैं आपके अलावा किसी और को नहीं जानता, जिसे मदद के लिए लिख सकूँ|”
महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने अमेरिका में विस्थापितों के विरोध में बनाए जाने वाले नियमों का ज़िक्र करते हुए इसे अन्यायपूर्ण कहा| वह पत्र में नए नियमों के ज़रिये विस्थापन को या वीजा पाने की प्रक्रिया को असंभव के स्तर तक जटिल बनाने के विरोध में अमेरिकी राष्ट्रपति तक अपनी बात पहुँचाने का आग्रह कर रहे थे-
“राष्ट्रीय विभाग में एक ऐसी योजना का अनुशीलन किया जा रहा है, जो ऐसे तमाम योग्य व्यक्तियों को अमेरिका में शरण देना पूरी तरह से असंभव बना देगी जो यूरोप में फासिज्म के शिकार हैं| ज़िम्मेदार लोगों के द्वारा बेशक यह खुलेआम नहीं स्वीकारा जा रहा| इसके लिए जो तरीका इस्तेमाल किया जा रहा है, वह यह है कि अमेरिका को विध्वंशक और खतरनाक तत्वों से सुरक्षित करने के लिए तथाकथिक रूप से प्रशासनिक कार्यवाहियों की बहुत ऊंची दीवार बनाकर विस्थापन को असंभव बना दिया जाए| मेरी सलाह है कि आप इस प्रश्न के बारे में किसी बढ़िया जानकार और न्यायपूर्ण विचारों वाले व्यक्ति जैसे श्री हेमिल्टन फिश आर्मस्ट्रोंग से बात करें| यदि इसके बाद आप सहमत हो जाती हैं कि एक सच्चा और गंभीर अन्याय होने वाला है तो मुझे विश्वास है कि आप इस मामले को अपने अत्यधिक बोझ से दबे पति महोदय (तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूजवेल्ट) की नज़र में लाना संभव कर पाएंगी ताकि इस समस्या का निदान हो सके|”
(Letter Courtesy: Digital Collections, FDR Library, USA)
उस समय अमेरिका जैसा देश अपने नियमों में ऐसे परिवर्तन कर रहा था ताकि विस्थापन की प्रक्रिया असंभव के स्तर तक जटिल हो जाए| जब दुनिया में राष्ट्रवाद चरम पर था और दुनिया दूसरे विश्व युद्ध के लिए अपनी कमर कस रही थी, उस समय भी अमेरिका के लिए विस्थापन को सीधे तौर पर रोक लगाने के आदेश देना संभव नहीं था| द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया ने घोर राष्ट्रवाद से उभर कर “ग्लोबल” होने की दिशा में नयी-नयी ऊँचाइयाँ छुईं| समय का चक्र घूमकर फिर वहीँ आ खड़ा है| आज एक बार फिर पूरी दुनिया में तमाम देशों में राष्ट्रवाद तेजी से उभर रहा है|
यह पत्र आज और भी प्रासंगिक हो उठता है जब दुनिया भर के तमाम देश जब विदेशी नागरिकों के वीजा समाप्त कर के उन्हें भेजने की तैयारी में हैं| हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध के समय लोग मुख्यतः राजनैतिक विचारधाराओं के कारण विस्थापित हो रहे थे, बल्कि आज जिन्हें तमाम देश वापस भेजने की तैयारी में हैं वह केवल अपनी रोजी-रोटी के लिए दूसरे देशों में नौकरियां करने वाले लोग हैं| समय बदल चुका है, न अब अमेरिका जैसे देशों में वैसी प्रथम महिलायें हैं और न ही उन्हें अन्याय के खिलाफ पत्र लिखने वाले मुखर बुद्धिजीवी|
(This article is originally published in “Setu”, a bilingual magazine, published from Pittsburgh, USA)