पियानो पर वे धुनें बजाओ जिन्हें बजाने से तुम्हें ख़ुशी मिलती है – आइन्स्टीन

सन 1915 में जब आइन्स्टीन युद्ध-विक्षिप्त बर्लिन में रह रहे थे तो उनसे अलग हो चुकी पत्नी और दो बच्चों हेंस ‘अल्बर्ट’ आइन्स्टीन और एडुअर्ड ‘टेटे’ आइन्स्टीन के साथ वियना (आस्ट्रिया) में रह रही थीं जो कि बर्लिन की अपेक्षा काफी सुरक्षित जगह थी। आइन्स्टीन और उनकी पत्नी मिलेवा में मतभेद के कारण, वह लोग काफी समय से अलग रह रहे थे। मिलेवा आइन्स्टीन से काफी नाखुश रहती थीं और वह नहीं चाहती थीं कि आइन्स्टीन अपने बच्चों से या तो मिलें या पत्र लिखें। वह आइन्स्टीन के लिखे पत्र बच्चों तक पहुँचने से पहले खुद पढ़ती थीं और बच्चों से आइन्स्टीन के बारे में बहुत अच्छी बातें नहीं करती थीं। आइन्स्टीन को यह सब अच्छा नहीं लगता था और वह अपने बच्चों से प्यार करते थे और उनसे बातचीत और मिलना-जुलना जारी रखना चाहते थे। ऐसी परिस्थितियों के बीच में ही सन 1915 में 04 नवम्बर को आइन्स्टीन ने अपनी सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक सापेक्षवाद की जनरल थ्योरी की गणनाएँ पूरी करने के बाद अपने बेटे को ख़ुशी में एक पत्र लिखा जिसमें वह अपने बेटे को इस बात के लिए राजी करते हुए प्रतीत होते हैं कि उसका पिता एक महत्वपूर्ण इंसान है और उसे अपने बेटे की फ़िक्र है, और वह अपने बेटे से प्यार करता है। Read More……

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