सन 1933 में जब नाज़ी जर्मनी में सत्तासीन हुये, तब प्रसिद्ध भौतिकविद और क्वांटम भौतिकी के जनकों में एक प्रोफ़ेसर मैक्स प्लांक 74 वर्ष के थे| वह अपनी आँखों के सामने देख रहे थे कि उनके तमाम यहूदी दोस्तों को उनके पदों से हटाया जा रहा है और अपमानित किया जा रहा है| सैकड़ों वैज्ञानिक हिटलर का जर्मनी छोड़कर दूसरे देशों को पलायन कर गए| हालांकि मैक्स प्लांक ने भी अपने एक भतीजे को लन्दन जाने में सहायता की, मगर खुद जर्मनी छोड़कर नहीं गए| उन्हें लग रहा था कि कुछ समय बाद जर्मनी की राजनैतिक स्थिति सुधर जायेगी|

उस समय प्रसिद्ध वैज्ञानिक (और नोबेल विजेता) ओटो हान ने जर्मनी के जाने-माने प्रोफेसर्स को इकठ्ठा करके यहूदी प्रोफेसरों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ एक नोटिस निकालने के लिए प्लांक से बात की| इसके जवाब में प्लांक ने कहा कि “आप इस मुद्दे के पक्ष में आज 30 लोगों को जुटा लेंगे, तो कल ये (नाज़ी) लोग इनके विरोध में 150 लोगों को इकठ्ठा कर लायेंगे, क्योंकि यह (नाज़ी) लोग यहूदी प्रोफेसरों के पदों को हथियाने के लिए लालायित हैं|” प्लांक ने हिटलर की नाज़ी हुकूमत के साथ सीधे टकराने से मना कर दिया था| हालांकि प्लांक कैसर विल्हेल्म सोसाइटी के प्रमुख थे और उन्होंने उस समय अपने प्रयासों से संस्था में यहूदियों कर्मचारियों की न सिर्फ संख्या बढ़ाई, बल्कि शांति के साथ उनका पक्ष भी लिया| हिटलर सरकार प्लांक के मन की बात समझती थी इसलिए जब कैसर विल्हेल्म सोसाइटी के प्रमुख के रूप में मैक्स प्लांक का का पदकाल समाप्त हुआ तो उन्हें दोबारा इस पद का कार्यभार नहीं दिया गया|
सन 1944 में मैक्स प्लांक के बेटे और जर्मनी के जाने-माने राजनीतिज्ञ इरविन प्लांक को जर्मनी की अदालत ने मृत्युदंड सुनाया था| मैक्स प्लांक अपने बेटे को मृत्युदंड की खबर सुनकर बहुत परेशान हुए| उन्होंने हिटलर को इरविन प्लांक का मृत्युदंड माफ़ करने की प्रार्थना करते हुए यह पत्र लिखा-
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बर्लिन
25 अक्टूबर, 1944
मेरे फुहरर (अधिनायक)!
मैं यह सन्देश पाकर गहरे विक्षोभ में हूँ कि मेरे बेटे इरविन को जनता की अदालत ने मृत्युदंड सुनाया है|
हमारी पितृभूमि (जर्मनी) की सेवा में मेरी उपलब्धियाँ, जिन्हें कि मेरे फुहरर, आपने बार-बार और अत्यंत सम्माननीय तरीकों से मेरे लिए संज्ञान में लिया था, मुझे विश्वास दिलाती हैं कि आप इस प्रार्थनारत 87 वर्षीय बूढ़े की बात सुनेंगे|
मेरे जीवन भर के कार्यों के लिए जर्मन लोगों के आभार स्वरूप, जो कि अनंत काल के लिए जर्मनी की बौद्धिक सम्पदा बन गये, मैं अपने बेटे को जीवनदान के देने के लिए आपसे याचना करता हूँ|
मैक्स प्लांक
(*Letter Courtesy: John Heilbron’s brilliant book “The Dilemmas of an Upright Man”.)
हालांकि यह गौर करने लायक बात है कि लिखे हुए पत्र में हिटलर की कोई चापलूसी नहीं है| मैक्स प्लांक का यह पत्र पढ़ते हुए लगता है जैसे वह कोई याचना नहीं बल्कि आग्रह कर रहे हों| हक से पूर्ण आग्रह| यह भी हो सकता है कि उन्हें विश्वास हो कि हिटलर उनके बेटे को माफ़ नहीं करेगा और उनके आस पास के लोगों ने एक बार पत्र लिखने के लिए बार-बार आग्रह किया हो और उनके दबाव में उन्होंने हिटलर को यह याचना-पत्र लिखा हो| मगर यह तो तय है कि प्लांक इस पत्र में याचना करते कहीं नहीं दिखते| वह पत्र के अंत में “आपका सच्चा” या “भवदीय” तक लिखना ज़रूरी नहीं समझते|
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‘इरविन प्लांक’ प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री और क्वांटम यांत्रिकी के जन्मदाताओं में से एक प्रोफ़ेसर मैक्स प्लांक के चौथे बेटे थे| इरविन प्लांक एक जर्मन राजनीतिज्ञ थे और उन्होंने नाज़ी हुकूमत की पुरज़ोर खिलाफत की|

इरविन अपनी जवानी के दिनों में जर्मन सेना में भर्ती हुए और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उन्हें फ़्रांसीसी सेना ने अगवा कर जेल भेज दिया। सन 1917 में जेल से छूटने के बाद वे जर्मनी वापस आये, इसके बाद उनकी राजनैतिक सक्रियता बढ़ने लगी। वह मेजर स्लैचर से मिले, जो कि हाल में ही गठित किये गए नए रक्षा मंत्रालय के प्रमुख नियुक्त किये गए। स्लैचर ने सन 1920 में प्लांक को अपना सचिव नियुक्त किया। इसके बाद वह अलग अलग पदों पर जर्मन सरकार के लिए काम करते रहे। 30 जनवरी सन 1933 को हिटलर के सत्ता में आने के बाद प्लांक ने पद से इस्तीफ़ा दे दिया, और विदेश यात्रा पर चले गए। जब वे वापस जर्मनी लौटे तो उन्हें पता चला कि उनके पुराने दोस्त और सहकर्मी मेजर स्लैचर और उनकी पत्नी की गोली मारकर हत्या दी गई है। इरविन ने हत्यारों को खोजने के प्रयासों के लिए सरकार पर दबाव बनाया मगर हत्यारों को पकड़वा पाने में असमर्थ रहे। इसके बाद वह कुछ समय व्यापारिक संस्थानों के साथ काम करते रहे, लेकिन उनकी राजनैतिक सक्रियता बनी रही।
अंततः सन 1940 में इरविन प्लांक, पोपित्ज़, हैसल, और लुडविग बेक ने एक “अनंतिम/अस्थाई संविधान” बनाया। जिसका आधार था कि पश्चिमी की ओर से किये गए हमले में हिटलर का निजाम उखाड़ कर फेंक दिया जाएगा। इसके बाद भी इरविन कई हिटलर विरोधी प्रतिरोधों में सक्रिय रहे। 20 जुलाई 1944 को वह हिटलर की हत्या के प्रसिद्ध प्रयास में भी शामिल थे। जिसके कारण उन्हें 23 जुलाई 1944 को गिरफ्तार कर लिए गया। इसके बाद अदालत के निर्देशानुसार उन्हें 23 जनवरी 1945 को फांसी पर लटका दिया गया।……. Read More….
Sir you have magic in you pen…. It’s really interesting.
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Thanks a lot, dear. Keep reading. Enjoy…
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Aapka vyaktigat Lekh padh kar prasannata Hui
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Thank You.. 🙂
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